पीराना में बनी विवादित नई दीवारपीराना गांव में सैयद इमाम शाह के दरगाह परिसर में दिनांक 30 जनवरी, 2022 को एक ही दिन में 13 फीट ऊंची दीवार खड़ी करने के पीछे असली कारण क्या हैं?
हिंदूओं और मुसलमानों की एकता का प्रतीक मानी जाने वाली इस दरगाह में आखिर ऐसा क्या हुआ की विवाद चलता ही राहत है?
सतपंथ के माध्यम से इस्लाम का प्रचार कैसे किया जाता है?
सतपंथ के अनुयायियों का “ब्रेनवॉश” कैसे किया गया ताकि वे इसे जाने बिना ही इस्लाम में परिवर्तित हो जाएं?
पीराना के साथ कच्छ कड़वा पाटीदार जाति का 500 साल का इतिहास इस विवादास्पद दीवार का निर्माण क्यों करवा रहा है?
सनातनी कच्छ कड़वा पाटीदार जाति का पीराना सतपंथ धर्म से क्या संबंध है कि इसके बिना पीराना सतपंथ के इतिहास को समझना असंभव है?
RSS, VHP, BJP आदि संगठनों कौन सी गलती कर रहें है कि 30-30 वर्षों के निस्वार्थ प्रयासों के बावजूद सतपंथ का प्रश्न हल नहीं होता है?
1. जानिए ऐसे ही कई सवालों के जवाब.. बेहद गहन शोध के अंत में:
अहमदाबाद से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटा सा गाँव है पीराना। जो अपनी कई दरगाहों के लिए प्रसिद्ध है। यहां की सबसे प्रसिद्ध दरगाह सैयद इमाम शाह बावा की। इतिहास कहता है कि सैयद समाज के कब्रिस्तान में बनी इस दरगाह को करीब 500 साल पहले खुद इमाम शाह ने बनवाया था।
इस दरगाह की छवि और प्रचार यह है कि यह दरगाह हिंदूओं और मुसलमानों की एकता का प्रतीक है। यहां हिंदू और मुस्लिम दोनों समाज “सैयद इमाम शाह अब्दुरहिम” उर्फ ”इमाम शाह बावा” उर्फ ”इमाम शाह महाराज” को मानते हैं। इमाम शाह के पिता का नाम पीर कबीरुद्दीन और दादा का नाम पीर सदरुद्दीन था। वह मूल रूप से ईरान के रहने वाले थे और उसका पारिवारिक व्यवसाय धर्म प्रचार करना था।
दरगाह के इतिहास को करीब से देखने पर निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं का पता चलता है;
पीराना की सैयद इमाम शाह दरगाह
दरगाह की देखभाल के लिए एक “काका” नियुक्त किया जाता है। जिसका मुख्य कार्य अनुयायियों के बीच सतपंथ धर्म का प्रचार करना और इमाम शाह के वंशजों को दान और दशमांश (वार्षिक आय का 10% देना) के धन का वितरण करना है। यह व्यवस्था 500 सालों से चल रही है। काका हमेशा भगवा रंग के कपड़े पहनते हैं ताकि हिंदूओं को संदेह न हो और काका पर आसानी से विश्वास हो जाए। हिन्दुओं को और अधिक विश्वास दिलाने के लिए एक नई उपाधि तैयार कर काका को दी गई है, जिसके अनुसार उन्हें जगतगुरु सतपंथाचार्य कहा जाता है।
न्यायालय द्वारा तैयार किया हुआ पीराना संस्था का संविधान जिसमें "रोजा" अर्थ "दरगाह" लिखा हुआ है और सैयद समाज के तीन ट्रस्टियों को लिया गया है।
वर्ष 1939 में अहमदाबाद कोर्ट के आदेश से इस दरगाह की देखरेख के लिए एक ट्रस्ट का गठन किया गया था। इस ट्रस्ट में 7 ट्रस्टी सतपंथ समाज से, 3 ट्रस्टी मुस्लिम सैयद समाज से और एक ट्रस्टी गादीपति काका होते हैं। इस ट्रस्ट का नाम “इमाम शाह बावा रोजा संस्थान समिति ट्रस्ट” है जिसका रजि. क्रम ई-738 (अहमदाबाद) है।
मस्जिद का शिलालेख जिसमें निर्माता का नाम पीराना के तत्कालीन गदीपति अब्दुर रहीम काका (उर्फ दीपा काका) लिखा है।ट्रस्ट का संविधान स्पष्ट रूप से कहता है कि यह सुनिश्चित करने के लिए ट्रस्ट बनाया गया है कि सैयदों को बिना किसी विवाद के दरगाह की आय से उनका उचित लाभ मिलता रहे। ट्रस्ट के पास सैयद इमाम शाह की दरगाह के अलावा उसी परिसर में सैयद समाज का कब्रिस्तान और पूर्व गदीपति दीपा काका उर्फ अब्दुर रहीम द्वारा निर्मित एक मस्जिद भी है। आज भी सरकारी दस्तावेजों में यह संपत्तियां इसी ट्रस्ट के नाम हैं।
इस ट्रस्ट के सभी लाभार्थी सैयद ही हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी अवसरों के साथ इस्लाम के त्योहारों पर सैयद को ट्रस्ट से लाभ मिलता है। कोई भी हिंदू या सतपंथी इस ट्रस्ट का लाभार्थी नहीं है। यह कानूनी रूप से पंजीकृत ट्रस्ट के संविधान में स्पष्ट लिखा है।
लेकिन कुछ सालों से देखने में आया है कि इमाम शाह की दरगाह पर आने वाले चढ़ावे की रकम ज्यादातर कच्छी पाटीदार ही दे रहे हैं। पीराना के प्रमुख अधिकारियों ने ऐसी व्यवस्था की है की इस संस्था में रखे जाने वाले रसीद बुक के साथ अन्य दो संस्थानों की रसीद बुकों को भी रखा है। छोटी राशि में मिलने वाले दान को इमाम शाह बावा रोजा ट्रस्ट की रसीद दी जाती है। अधिक राशि होने पर दाता के समाज एवं गांव की जांच कर उसके अनुसार कच्छ कड़वा पाटीदार सतपंथ समाज संस्था या गौशाला संस्था की रसीद दी जाती है। आस्था के साथ इमाम शाह बावा दरगाह को दी जाने वाली राशि का दुरुपयोग किया जाता है। यह एक छिपा हुआ तथ्य है जो हर कोई जानता है।
2. हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक मानी जाने वाली इस दरगाह में ऐसा क्या हुआ है कि विवाद लगातार जारी हैं?
इस प्रश्न की जड़ में कच्छ कड़वा पाटीदार (यानी “क. क. पा.”) जाती की मुख्य भूमिका है। पीराना सतपंथ धर्म के बारे में, क. क. पा. जाति कैसे जुड़ी थी और है, यह समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है। उसी तरह इस जाती में होने वाली गतिविधियों का सीधा प्रभाव पीराना सतपंथ पर किस तरह से होता है, यह समझना बहुत जरूरी है। यह हमेशा से देखा गया है कि सामान्य इतिहासकारों में इस के विषय के बारे में जरूरी अध्ययन की कमी रही है।
विवाद को समझने के लिए सबसे पहले पीराना सतपंथ की स्थापना के उद्देश्यों और परिणामों को देखें। इस्लाम को हिन्दू आसानी से स्वीकार कर लें, इस हेतु से सैयद इमामशाह के दादा पीर सदरुद्दीन द्वारा स्थापित सतपंथ धर्म के प्रचार प्रसार करने हेतु मूल ईरान के सैयद इमामशाह अबदूरहिम पीराना आ कर बसे। इतिहास कहता है कि बाह्य हिन्दू दिखावा और सिद्धांतों का दुरुपयोग कर अनेक हिंदूओं को पहले सतपंथी बनाया गया। बाद में कुछ समय पश्चात परोक्ष रूप से इस्लाम के मूल्यों और सिद्धांतों को अच्छे और श्रेष्ठ बताकर सतपंथियों को मुसलमान बनाया गया।
इस पद्धति से इमामशाह के दादा पीर सदरुद्दीन द्वारा “हिन्दू लोहाना” जाती के लोगों को पहले सतपंथी बनाए गए होने के उदाहरण आपने जरूर सुने होंगे। ठीक इसी पद्धति से मोरबी-वांकानेर के आसपास रहने वाले कड़वा पाटीदार आज मोमना मुसलमान बन गए हैं।
पीराना सतपंथ धर्म पालकर कट्टर मुसलमान हुए लोगों की कुछ जमातों के नाम ..
(नोट: नूरशाही यानी इमामशाह के बेटे नूर मुहम्मद शाह जिसे पीराना सतपंथ के पहले निष्कलंकी नारायण अवतार गिना जाता है।) 1.नूरशाही मोमिन जमात – सूरत – गुरु सरफराज अली सैयद 2.नूरशाही मोमिन जमात – जमालपुर अहमदाबाद – गुरु नजर अली सैयद 3.सतपंथी शेख बस्ती – अहमदाबाद – गुरु सरफराज अली सैयद 4.मोमना पटेल जमात – कानम प्रदेश – गुरु गुलाम हुसैन बापू , जिथेरड़ी, करजन
रणनीति यह थी के सतपंथ के शास्त्रों में हिन्दू देवी-देवताओं का दुरुपयोग किया जाए। इस्लाम के प्रचार प्रसार के लिए हिन्दू देवी-देवताओं का उपयोग कैसे संभव हो सकता हैं? इसका जवाब मुंबई हाईकोर्ट ने वर्ष 1866 में दिए गए एक फ़ैसले में खूब अच्छी तरह से मिलता है। फ़ैसले में बताया है की इस्लाम में धर्म परिवर्तन करने का आसान करने के एक रणनीति है, जिसका नाम “अल ताकिया” (ALTAQIYYA) हैं। जिस का उपयोग करते समय इस्लाम में वर्जित सभी चीजें करने की अनुमति मिल जाती है। उदाहरण के तौर पर एक मुसलमान धर्म प्रचारक को हिन्दू धर्म का प्रचार करने की अनुमति मिल जाती है। हिन्दू साधु के वेश पहन कर हिन्दू धर्म का प्रचार करने की छूट भी मिल जाती हैं। इस पद्धति से लोगों का विश्वास जीत कर उनके मान में आपने ही मूल हिन्दू धर्म को लेकर शंका निर्माण कर, उनका ब्रेनवॉश किया जाता है।
इसी तरह से सतपंथ में भगवान राम, कृष्ण, विष्णु, नारायण इत्यादि का उपयोग किया जाता है। हिन्दू धर्म के भगवान विष्णु के मुख्य दस अवतारों को भ्रष्ट कर इमामशाह ने दसावतार ग्रंथ फिर से लिखा। उन्होंने इस दसावतार ग्रंथ को इस तरह से रचा की भगवान राम, कृष्ण, कल्कि अवतार इत्यादि देवों के मुख से हिन्दू धर्म को नीचा/हिन बताया और इस्लाम को उच्च बताया हैं। इस इस्लामी सतपंथ धर्म को कलियुग का सच्चा सनातन हिन्दू धर्म बताया गया। हाथों हाथ मूल हिन्दू धर्म को कलियुग में रद्द हो जाने की बात कहकर, हिंदूओं में डर बैठाने के लिए यह कहा कि मूल हिन्दू धर्म पालने वाले नरक में जाएंगे।
3. इस रणनीति के माध्यम से सतपंथ के अनुयायियों का “ब्रेनवॉश” करने में आया:
ऐसे प्रचार के कारण हिंदूओं के सभी रित रिवाज सतपंथी खुशी-खुशी छोड़ते गए और धीरे-धीरे इस्लाम के रीत रिवाज अपनाते गए। जिसमें मृतक को दफनाने की प्रथा शामिल है। ऐसा करते समय पर अनुयायी ऐसा ही समझते रहे की वह पक्के हिन्दू हैं और जो अन्य मूल हिन्दू हैं वह तो जूठे हिन्दू हैं। मृत्यु के बाद केवल हमें ही सच्चा स्वर्ग मिलेगा। कलियुग के अंत में समस्त धरती पर हमारा ही राज रहेगा। इस लालच के आड़ में उनका ब्रेनवॉश ऐसा हुआ की अगर एक बार सच्चाई समझने की कोशिश करना चाहे तो भी उनके मन में घर कर चूक स्वर्ग का प्रलोभन उसे सही बात सोचने नहीं देगा।
सतपंथ के शास्त्रों में हिन्दू मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु के दसवें अवतार यानी “कल्कि” अवतार ने अरब देश में “हजरत मौला अली तालिब” नाम से जन्म लिया है। कोई हिन्दू शंका न करें इसलिए हजरत मौला अली को भारतीय/हिन्दू नाम देने में आया.. “निष्कलंकी नारायण”। आप समझ सकेंगे की हिन्दू धर्म के किसी भी शास्त्र में निष्कलंकी नारायण का उल्लेख ही नहीं है। केवल मुसलमान धर्म के शास्त्रों में ही निष्कलंकी नारायण का उल्लेख है।
इसके वजह से जब सतपंथी ऐसा कहें कि हम नारायण के दसवें अवतार कल्कि अवतार को निष्कलंकी नारायण नाम से पुजते हैं, तो सामान्य हिंदूओं को पता नहीं चलेगा की यह लोग एक मुसलमान को पूज रहें हैं। समझने वाली बात यह हैं कि अगर उनको कल्कि अवतार को पूजना हैं तो नाम बदलने की क्या जरूरत हैं? वह भी “निष्कलंकी नारायण” जैसे मुसलमानी नाम क्यों? कल्कि नाम क्यों नहीं? उत्तर स्पष्ट है। ऐसा करने के पीछे का इरादा है की मुसलमानी देव को हिन्दू पहचान देकर हिन्दू समाज में शामिल कर देना।
इन परिस्थितियों में अगर कोई व्यक्ति उनकी यह पोल लोगों के सामने खोले, तो उसका चुप कराने के लिए..
हिन्दू धर्म बाँट रहे हो
हिंदूओं की एकता तोड़ रहे हो
सतपंथ यानी सत्य का पंथ, इसमें कुछ गलत नहीं है
जिसे जो नाम से भगवान को पूजना हो, वह नाम से पूज सकता है
आप हमारी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हो
आप सतपंथ के पैसों के पीछे लगे हो, सत्ता के पीछे लगे हो
इत्यादि .. आक्षेप लगाकर “विक्टिम कार्ड” (यानी सहानुभूति लेने के लिए शिकार होने का नाटक करना) खेल खेलने में आता है।
संक्षिप्त में कहें तो सतपंथ के अनुयायी हिन्दू धर्म में ना लौटें इसलिए “अल ताकिया” का प्रयोग कर लोगों को भ्रम में डाला जाता है। सतपंथ की पोल दुनिया के सामने ना खुले वैसे प्रयत्न किए जाते हैं । ऐसे प्रयत्नों में छलावा की मुख्य भूमिका होती है, इस बात का संज्ञान लेना होगा।
4. पीराना की मुख्य संस्था का संचालन कच्छ कड़वा पाटीदार जाती के हाथ में आ गया:
धर्म परिवर्तन के लिए तैयार करने में आया सतपंथ की भ्रामक जाल में कई जाती के लोग शुरु में चपेट में आए । गुजरात और सिंध के लोहाना, रबारी, सुमरा, लेवा पाटीदार, कड़वा पाटीदार इत्यादि जातियाँ थी। लोहाना जाती के कई लोग सतपंथ को पालकर मुसलमान बन गए। मुसलमान बनने पर इन लोगों ने सतपंथ छोड़ दिया है।
बाकी बची हुई जाती जैसे-जैसे सतपंथ में गहराई में उतरे, वैसे-वैसे उनके सामने धीरे-धीरे सतपंथ की पोल खुलती गई। इस तरह से धीरे-धीरे हर एक जाती अब तक काफी हद तक सतपंथ छोड़ चुकी हैं। आखिर में बची कच्छ कड़वा पाटीदार जाती। 20वीं सदी के प्रारब्ध में पीराना संस्थान का प्रशासन प्रमुख रूप से कच्छ कड़वा पाटीदार जाती के हाथ में आ चुका था। इस जाती के अलावा कुछ जाती के छोटी संख्या में लोग सतपंथ को मानते हैं, पर ट्रस्ट के संचालन में उनका कोई वजन नहीं है अथवा तो पीराना में उनकी संस्था अलग है। धी इमामशाह बावा रोज़ा संस्थान कमेटी ट्रस्ट में वह लोग नहीं है। वैसे ही छोटी मोटी संख्या में कुछ लोग केवल दर्शन कर चले जाते हैं।
इसलिए यह कहा जा सकता हैं की अधिकांश तौर पर संचालन में अनुयायियों के रूप में एक ही जाती के लोग, यानी कच्छ कड़वा पाटीदार जाती के लोग पीराना की प्रमुख संस्था “धी इमामशाह बावा रोजा संस्थान कमेटी ट्रस्ट” में हैं।
5. कच्छ कड़वा पाटीदार (क. क. पा.) जाती में धार्मिक जागृति का उदयन:
सतपंथ छोड़ कर हिन्दू बना सनातनी कच्छ कड़वा पाटीदार जाती का नाखत्राना का केन्द्रीय मुख्य कार्यालय
जिस समय पीराना की प्रमुख संस्था का संचालन क. क. पा. जाती के हाथ में आया, उसी समय अंतराल में क. क. पा. जाती में बहुत बड़ी धार्मिक क्रांति का जन्म हुआ। जाती के आध्य सुधारक श्री नारायण रामजी लिम्बाणी और महान समाज सेवक श्री रतनशी खिमजी खेताणी का आगमन समाज के फलक पर हुआ।
जब उनके मान में प्रश्न उठा की हम खुद को हिन्दू मानते हैं, तो फिर हमारे धर्म (यानी उस समय पर सतपंथ धर्म) के शास्त्रों में हिन्दू देवों के उल्लेख के साथ यानी ब्रह्म, विष्णु, महेश के उल्लेख के साथ इस्लामी कलमा कैसे हो सकते हैं? उदाहरण के तौर पर “फरमानजी बिस्मिल्लाह हर रहेमान ..” और “हक लाहे ईलल्लीलाह मुहममदूर रसूल ईलल्लीलाह”
उस व्यक्त सतपंथ के शास्त्रों में इस्लामी शब्दों की भरमार रहती थी। जैसे की अल्लाह, मुहम्मद, अली, नूर इत्यादि। उनमें हिन्दू रीत रिवाजों, धार्मिक चिन्हों और श्रद्धा के केंद्रों का खंडन था और उसी जगह पर इस्लाम के रीत रिवाज इत्यादि को सर्वोच्च और हिंदूओं की तुलना में श्रेष्ठ बताने में आया था।
जब जन्म परिवर्तन के इस षड्यन्त्र की पोल दुनिया के सामने रखी, तब कच्छ कड़वा पाटीदार जाती के लोग सतपंथ धर्म को बड़ी संख्या में त्याग ने लगे। और एक बहुत ही बड़े वर्ग के लोगों ने भगवान लक्ष्मीनारायण को इष्ट देव के रूप में स्वीकार कर हिन्दू बन गए।
सतपंथ धर्म छोड़कर सनातन धर्म अपनाने वाले लोगों ने अपनी नई सनातनी जाती/समाज की रचना की। जिनकी केन्द्रीय संस्था है “श्री अखिल भारतीय कच्छ कड़वा पाटीदार समाज – ट्रस्ट रजी. क्रम A-828-कच्छ”। इसे “सनातनी समाज”, “केन्द्रीय समाज”, “मातृ समाज” भी कहा जाता है। इस संस्था का पता है.. पाटीदार विद्यार्थी भवन, नखत्राना, कच्छ, गुजरात – 370615. अपने संगठन को मजबूत करने हेतु जगह-जगहों पर समाज के हॉल बांधे गए। शिक्षण संस्थाएं रही गई। गाँव-गाँव में इष्टदेव भगवान लक्ष्मीनारायण और कुलदेवी उमीया माता (उमा देवी) के मंदिर बनवाए गए। सार यह की सामाजिक और धार्मिक इंफ्रास्ट्रक्चर/सुविधाएं बनाई गईं। फलस्वरूप सतपंथ धर्म छोड़ने वाले लोगों का प्रवाह प्रबल होता गया। इस उपाय क कारण आज लाखों लोग सतपंथ छोड़ कर हिन्दू-सनातनी बन चुके हैं।
6. पीराना सतपंथ के संचालक क्यों घबरा गए?
सतपंथ धर्म छोड़कर जाने वाले लोगों के प्रवाह को रोकने के तमाम प्रयत्न निष्फल हो रहे थे। एक के बाद एक परिवार और एक के बाद एक गाँव हिन्दू बनता गया। सतपंथ के धार्मिक स्थल जिसे “जमात खाना” उर्फ “खाना” उर्फ “जगह” उर्फ “ज्योति मंदिर” इत्यादि कहा जाता था, उन स्थलों को रातोंरात हिन्दू मंदिरों में बदल देने में आया। युवाओं के लिए सतपंथी पहचान एक शर्म की बात बन गई। सतपंथी अपनी असली पहचान छिपाते फिरते थे। वातावरण ऐसा बन गया की इस्लाम के कलमाओं और सतपंथ के शास्त्रों के साथ कोई जुड़े रहने के लिए तैयार नहीं था। सनातनी क. क. पा. जाती द्वारा उठाए कदमों के कारण वर्ष 1985 तक परिस्थिति ऐसी निर्मित हुई की पीराना की संस्था बंद होने की कगार तक पहुँच गई।
पीराना के संचालकों के सामने तलवार की धार पर चलने की परिस्थिति निर्माण हो गई। अगर पीराना अपनी असली मुसलमान पहचान को अपनाता है, तो उनकी दुकान उसी क्षण बंद हो जाएगी। और अगर शुद्ध हिन्दू धर्म को अपना ले, तो भी उनके सामने अस्तित्व का सवाल खड़ा होता था। क्यों की हिन्दू धर्म में अनेक साधु संत हैं। सतपंथ के साधु संतों के पास हिन्दू साधु संतों को टक्कर देने योग्य ज्ञान और अभ्यास नहीं था। दूसरी ओर हिन्दू श्मशान को अपवित्र मानते हैं। तो फिर पीराना कौन आएगा.. जहां सैयद इमामशाह, उनकी पत्नी बीबी फातिमा और उनके पुत्र नर मुहम्मद शाह की मुख्य कब्रों के साथ अनेक कब्रें हैं। सैयद इमामशाह का मूल स्थान मुसलमानों के कब्रिस्तान में है। इन परिस्थितियों में कोई सामान्य हिन्दू पीराना के साथ नहीं जुड़ना चाहेगा। इसलिए एक तरफ खाई और दूसरी तरफ कुआँ जैसी परिस्थिति थी।
विश्व भर की बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटीयों के शोधकर्ता द्वारा किए रिसर्च के लेखों में बताया है कि ऐसे समय पर पीराना स्थापक इमामशाह द्वारा अपनाए रणनीति को फिर से छिपे और घातक रूप से अपनाने का तय हुआ। जिसे आज तक कोई पहचान नहीं पाया। उन्होंने जो किया वह सामान्य लोगों की समझ के परे था।
7. पीराना सतपंथ की डूबती नाव को बचाने के लिए कौन से रणनीति अपनाई गई?
सतपंथ की रचना करते समय रणनीति यह थी की इस्लाम के बीज को केंद्र में रख कर उसके इर्दगिर्द हिन्दू दिखावा/रूप बुना जाए। जिससे हिन्दू आसानी से सतपंथ की ओर आकर्षित हो सके और बाद में लगाव हो जाने के बाद गहराई में जाए तब इस्लाम की ओर मुड़ जाए। पीराना के संचालकों ने इस रणनीति फिर से अपनाया। फर्क केवल इतना था कि इस बार हिन्दू दिखावा को बढ़ाया गया।
इस्लामी बीज क्या होता है? पीराना सतपंथ का इस्लामी बीज चार तत्वों में है।
सैयद इमामशाह उर्फ इमामशाह महाराज
हजरत अली उर्फ निष्कलंकी नारायण
पीराना का धार्मिक स्थान
सतपंथ के शास्त्र
ऐसा तय करने में आया कि उपरोक्त बीज यानी चार तत्वों के अलावा अन्य वस्तुओं में जरूरत अनुसार, समय, स्थल और परिस्थिति को ध्यान में रखकर परिवर्तन किया जा सकता है। जैसे की सतपंथ में सामान्य रीत से मृतक को दफनाया जाता है। पर आसपास के अन्य हिन्दू समाजों में अपनी छवि खराब न हो उसके लिए अथवा तो जहां हिन्दू कब्रिस्तान नहीं है, वहाँ अग्नि संस्कार करने की अनुमति है।
जैसे की कलमा और आयातों को पढ़ कर सतपंथ के मुखी के हाथों इस्लामी निकाह पद्धति से होती शादियाँ अब हिन्दू यज्ञ पद्धति से होने लगीं। दफ़न विधि के साथ अग्नि संस्कार को भी स्वीकारा गया। हिन्दू त्योहारों को भी स्वीकार ने में आया। सबसे बड़ी बात यह है की कड़वा पाटीदारों की कुलदेवी उमीया माता को भी स्वीकार कर सैयद इमामशाह के साथ रखने में आया। “सतपंथ समाज” के नाम में भी “सनातन” शब्द को जोड़कर “सतपंथ सनातन समाज” रखने में आया।
अन्य विवादित विधियां भी चलती थी जैसे की पूजा में आटे की गाय काट कर प्रसाद में देना, सैयद धर्मगुरुओं का हिन्दू सतपंथीयों के घर आना, इत्यादि। कट्टर/रूढ़िवादी सतपंथीयों के घर में आज भी छिप कर यह सब चल रहा हैं। पर सामाजिक परिस्थिति अनुसार जनता के बीच यह बात नहीं आती।
संक्षिप्त में कहें तो सूत्र ऐसा था कि सतपंथ छोड़ने वाले लोगों के प्रवाह को रोकने के लिए इतिहास का फिर से सहारा लेने में आया। इस्लाम के अल-ताकिया का फिर से उपयोग करने में आया। पर फर्क इतना था कि इस बार अल-ताकिया का षड्यन्त्र इतना गहरा था कि हिन्दू धर्म के संगठन, जैसे की RSS, VHP, BJP, बजरंग दल और कुछ साधु संत इसके शिकार बन गए। इस सभी संगठनों को पता तक नहीं चल वह पीराना की कठपुतली कब बन गए।
8. इस्लामी बीज को किस तरह से संजोया गया?
सतपंथ में इस्लामी बीज के चार तत्वों को इस तरह से सुरक्षित करने में आया ..
सैयद इमामशाह – बावा का मूल नाम “सैयद इमाम शाह अब्दुर रहीम कुफ़रेषिकान” को बदलकर उन्हें हिंदू पहचान देने में आई। उनका नाम इमामशाह महाराज रखा गया। और सद्गुरु कहकर भी संबोधित किया गया। साथ में यह प्रचार करने में आया कि इमामशाह ने हिंदू धर्म का प्रचार प्रसार किया था।
निष्कलंकी नारायण – सतपंथ के आराध्य देव “हजरत मौला अली” ( मोहम्मद पैगंबर के चचेरे भाई) का मूल नाम छिपाकर रखा गया। पीर सदरूद्दीन द्वारा उनको दिए गए हिंदू/भारतीय नाम “निष्कलंकी नारायण” को आगे किया गया।
पीराना – स्थान को भी हिंदू नाम “प्रेरणा पीठ” दिया गया।
सतपंथशास्त्र – का भाषांतर करने में आया। अरबी और इस्लामी शब्दों की जगह समानार्थी हिंदू एवं भारतीय शब्दों को रखा गया। अल्लाह की जगह पर विष्णु लिखा गया, मुहम्मद को ब्रह्मा स्वरूप कहने में आया, हजरत अली को निष्कलंकी नारायण कहा गया। सूत्र ऐसा अपनाया कि केवल पूजा की भाषा को बदलने में आया। जिस देव की पूजा हो रही उस देव, यानी हजरत मौला अली, को बदलना नहीं है। जिस तरह से कुरान का हिंदी भाषा में अनुवाद करने से इस्लाम हिंदू धर्म नहीं बन जाता, ठीक उसी तरह से सतपंथ के शास्त्रों का अनुवाद करने से वह भी हिंदू धर्म नहीं बन जाता। इस तरह से अनुवादित किए सतपंथ के शास्त्रों में हिंदू देवी देवताओं का उल्लेख देखकर पहली नजर में कोई भी यह शंका नहीं कर पाएगा की वास्तव में सतपंथ इस्लाम धर्म का भाग है।
धोलका में सतपंथ धर्म स्थल का बोर्ड
ध्यान दें – धोलका: जिन सतपंथीयों को यह बदलाव पसंद नहीं थे ऐसे रूढ़िवादी सतपंथियों का एक अलग गुट देखने में आया। यह लोग इमामशाह के मूल ग्रंथों शास्त्रों और रीति-रिवाजों को आज भी जड़ से पकड़े हुए हैं। यह गोट आज भी बहुत सक्रिय है। सैयद सलाउद्दीन बावा इस गुट के धर्मगुरु है। पीराना से कुछ ही दूरी पर आने वाले धोलका नामक गांव में इस गुट का प्रमुख धार्मिक स्थल है। स्थल के बीचोबीच एक बड़ी दीवार है जिसके एक तरफ हिंदू दिखावा वाला धार्मिक स्थल है और दूसरी तरफ पक्के इस्लाम का स्थल है।
धोलका में हिन्दू दिखावे वाली जगह में इस्लामी कब्रों के साथ कथा कथित निष्कलंकी नारायण मंदिर देख सकते हैं। इस कथा कथित मंदिर में ब्रह्म विष्णु महेश जैसे हिन्दू देवों को भी देखा जा सकता है। जब की दूसरी ओर बड़ी सी दरगाह है। जिस के परिसर में दाताओं के छोटे-छोटे बोर्ड लगे हैं। उन बोर्ड में आपको लगभग सभी हिन्दू नाम दिखेंगे, जो सतपंथियों के हैं। जिन्होंने दरगाह बनाने और अंदर सुविधाएं तैयार करने में दान दिए हैं। सतपंथ के धर्म परिवर्तन को अच्छी तरह से समझने के लिए आपको यह जगह जरूर देखनी चाहिए।
धोलका का सतपंथी मंदिर
धोलका की सतपंथी दरगाह
अब, ऊपर बताए बदलावों को प्रचलित करने के लिए और हिंदूओं इन बदलावों पर अंधा विश्वास करें इस हेतु से तीन हिंदू संगठनों का दुरुपयोग करने में आया।
हिंदू साधु संत: साधु संतों के पास ऐसा आवेदन करने में आया की हमारे सतपंथ लोग मुसलमान न बन जाए, इसलिए आप हमें सहयोग दीजिए। ऐसी बात सुनकर कोई भी हिंदू मदद के लिए आगे बढ़ेगा, यह स्वाभाविक है। साधु संतों ने भी ऐसा ही किया। किसी ने भी शत पद के शास्त्रों और इतिहास का योग्य अभ्यास करने का महत्व नहीं समझा। उसी तरह सतपंथ के साथ जुड़ी हुई कच्छ कड़वा पाटीदार जाति के धार्मिक इतिहास का भी अभ्यास नहीं किया।
अनौपचारिक बैठकों में यह साधु संत बताते हैं कि उन्होंने फिराना के कर्ता धर्ताओं के साथ बंद दरवाजे के पीछे शर्त रखी की उन्हें सभी इस्लामी तत्वों को हमेशा के लिए त्यागना होगा। सतपंथ के शास्त्रों को भी निकालकर मुख्य हिंदू धर्म के शास्त्रों को सतपंथ में दाखिल करवाने होंगे। सतपंथियों की ओर से सकारात्मक वचन मिलने के पश्चात साधु संतों ने पीराना सतपंथ को हिंदू धर्म का भाग होने की बात लोगों के कहना शुरू किया। पीराना के नेतृत्व में वर्ष 1990 के बाद कई सारे साधु सम्मेलनों का आयोजन हुआ। जैसे-जैसे समय बीतता गया वैसे-वैसे मुख्य साधुओं के अलावा पीछे से जुड ने वाले साधुओं को इस शर्त की कोई जानकारी नहीं दी गई। दूसरी ओर पीराना की तरफ से साधु को दिए जाने वाले दान दक्षिणा में छूट रखने में आई। इसलिए सभी को अच्छा लगने लगा। पीराना वालों को भी अच्छा लगने लगा क्योंकि मूल शर्त तो एक बाजू रख दी गई थी।
पीराना सतपंथ के साधुओं को किसी प्रकार से महामंडलेश्वर की उपाधि मिल गई थी। सतपंथियों को खुश रखने के लिए कुछ हिंदू साधुओं ने सतपंथ तो हिंदू धर्म है, ऐसे झूठे प्रमाणपत्र भी दिए। इस तरह से अखिल भारतीय संत समिति ने सतपंथ को मान्यता भी दे दी। सतपंथ को समिति में शामिल करने के लिए एक नई उपाधि “जगदगुरु सतपंथाचार्य” बनाई गई। धीरे-धीरे सतपंथ के साधु को कुंभ मेला में भी स्थान मिलने लगा। अयोध्या में बन ने वाले राम मंदिर के नींव रखने के कार्यक्रम में भी आमंत्रण प्राप्त करने में सफल हुए।
RSS, VHP और बजरंग दल: RSS, VHP और बजरंग दल का भी संपर्क करने में आया। कुछ मुसलमानों और समाज विरोधी तत्वों द्वारा पीराना में पत्थर मार कर हिंदूओं को डराकर भगाने के प्रयास हो रहे हैं, ऐसा झूठा प्रचार करें, इन संगठनों से मिली सहानुभूति के दम पर उनसे परोक्ष रक्षण लिया।
पीराना में VHP, RSS इत्यादि के वर्ग शुरू हुए। इन वर्गों के लिए जरूरी तमाम सुविधाएं जैसे की हॉल, खाना-पीना इत्यादि पीराना द्वारा देने में आई। जिससे स्थानीय हिंदू संस्थाओं के कार्यकर्ताओं का काम बहुत आसान होने लगा। इसलिए अपने ऊपरी अधिकारियों को पीराना के बारे में अच्छे अभिप्राय दिए गए। पीराना के उपकार (ऑब्लिगेशन) के नीचे दबे अधिकारी पीराना के सामने सच्ची बात कहने की क्षमता खो बैठे।
राजकीय पक्ष और सरकारी एवं पुलिस तंत्र को साध लिया: यह समय था जब गुजरात में भाजपा सत्ता पर आई। RSS, VHP, बजरंग दल के कार्यकर्ताओं मदद से अब भाजपा में भी लेकिन अच्छे संपर्क बना लिए गए। गुजरात की सत्ता पीराना विषय पर उनके कहने अनुसार चलने लगी। इसलिए पुलिस और सरकारी तंत्र पीराना के खिलाफ़ कदम उठाने से दूर रहने लगे।
पीराना मतदाता विस्तार के धारा सभ्य बाबूभाई जमनादास पटेल, जो भाजपा से आते हैं, उनके पीराना के साधु संतों के साथ कई फोटो देखने मिलते हैं। पूर्व मंत्री भूपेंद्र चुडासमा भी पीराना को खूब सहयोग देते हैं। विपक्ष के नेता कांग्रेस पक्ष के परेशभाई धनानी और अहमद पटेल भी पीराना जाते आते थे। सरकार का विरोध पक्ष भी पीराना के लिए सहानुभूति रखें, तो सरकार ऊपर किसी का दबाव नहीं रहता है।
धीरे-धीरे पकड़ इतनी बढ़ गई की पीराना में जो नई दीवार खड़ी की गई, उस कार्य में गुजरात भाजपा के राज्य मंत्री श्री प्रदीपसिंह वाघेला ने विशेष रुचि ली है, ऐसी जानकारी आधारभूत सूत्रों के माध्यम से मिली है।
पीराना सतपंथ द्वारा अपनाए गए बाह्य हिंदू दिखावे को RSS, VHP, भाजपा और कुछ साधु संतों ने सत्यता की मुहर लगा दी। पर कौन जानता था कि भविष्य में, हिन्दुओं के ही विरुद्ध में, इस मुहर का दुरुपयोग भी कोई करेगा।
9. अल-ताकिया युक्त प्रचार कैसा था? और इससे सतपंथ को कैसा लाभ हुआ? कुछ उदाहरण:
A. सतपंथियों की जनसंख्या: राजकीय पक्षों के सामने ऐसा झूठा प्रचार करने में आया की सतपंथ को मानने वाले लोगों, हिंदू समाज के सभी 18 वर्णों से आते हैं। और उनकी जनसंख्या 16 लाख से भी ज्यादा है। वह 20 से 25 विधानसभा की बैठकों के हार जीत को प्रभावित करते हैं। स्वाभाविक है कि यह सुनकर भाजपा और कांग्रेस इस बात को गंभीरता से लेंगे। पर वास्तविकता कुछ और ही है। पीराना सतपंथ के संचालन में एक ही मुख्य जाती है और वह कुछ कड़वा पाटीदार जाति के सतपंथी लोग हैं। पूर्व में बताए अनुसार अन्य जाति के कुछ लोग दर्शन इत्यादि करने आते हैं पर संचालन करने और दान देने में उनकी कोई खास भूमिका नहीं है। कच्छ कड़वा पाटीदार जाति में सतपंथ धर्म पालने वाले लोगों की संख्या बहुत ही मर्यादित है। अधिकांश वर्ग तो सनातन हिंदू बन चुका है। सतपंथ मानने वालों की संख्या अंदाज़न केवल 12 से 15 हजार तक ही सीमित है। जिस में कच्छ, साबरकांठा और बनासकांठा का विस्तार प्रमुख है। पीराना के इर्दगिर्द बहुत छोटी संख्या में सतपंथी रहते हैं।
इस बात को साबित करने के लिए आपका ध्यान इस बात पर जाना चाहिए कि पीराना का ट्रस्ट “धी इमाम शाह बावा रोजा संस्थान कमेटी ट्रस्ट” के संचालन में 7 ट्रस्टी पाटीदार हैं, 3 सैयद है और एक गादीपति काका है। अगर अन्य जाति के लोग हैं तो पीराना के ट्रस्ट में क्यों नहीं है? अगर 16 लाख का आंकड़ा सही होता अन्य समाज के लोग पीराना का संचालन करते होते। 12 से 15 हजार वाला लोगों का समाज संचालन में न होता।
अपने प्रचार में सतपंथी अपनी जनसंख्या आज 16 लाख बताते है, कल शायद 32 लाख कहें और आगे शायद 50 लाख भी कहे। कौन गिनने जाने वाला है? हाँ चैरिटी कमिशनर के ऑफिस में पीराना सतपंथ को मानने वाले लोगों की मतदाता सूची है, जिसे पीराना की संस्था यानी इमाम शाह बाबा ट्रस्ट द्वारा तैयार की गई है। इस सूची के अनुसार पीराना सतपंथ को मानने वाले लोगों की संख्या केवल 11 हजार तक है। हमने तो फिर भी 12 से 15 हजार तक की संख्या पकड़ी है। सोचिए कहाँ 11 हजार और कहाँ 16 लाख। कितने हद तक झूठ हो सकता है? एक किसी की भी कल्पना के बाहर है।
इमामशाह बावा रोज़ा संस्थान कमेटी ट्रस्ट (रजी। E-738) चैरिटी कमिश्नर में दिए मतदाता सूची में बताई गई सतपंथीयों की जनसंख्या वर्ष 2022
1 भावनगर विभाग 1,564 2 चरोतर विभाग 105 3 कानम विभाग 4,660 4 कापड़वंज विभाग 1,097 5 कच्छ – मांकुवा विभाग 2,340 6 कच्छ – नेत्रा विभाग 1,029 7 कच्छ – विथोण विभाग 622 कुल : 11,417
इस बात से साबित होता है की पीराना सतपंथ को पालने वाले लोगों की संख्या गुजरात में बहुत ही छोटी है। केवल शोर ही ज्यादा है। जहां कहीं भी उनके कार्यक्रम होते हैं, वहाँ वहीं लोग दिखते हैं। पर उनके कार्यक्रमों में एक से एक बड़ा नेता जरूर होता हैं। मंच पर से बड़ी-बड़ी बातें होती हैं। जिसे लोगों को लगे की पीराना सतपंथ के मानने वाले लोगों की संख्या बहुत बड़ी है।
B. RSS इत्यादि धोखा खा गए: लगभग 30 वर्षों से RSS, VHP, बजरंग दल, BJP और कुछ हिन्दू साधु संत पीराना में विशेष रुचि ले रहे हैं। उनके साथ बंद कमरों में होने वाली बातचीत में वह स्पष्ट रूप से स्वीकारते हैं कि पीराना सतपंथ हिन्दू धर्म का भाग नहीं है। सैयद इमामशाह ने अपनी मृत्यु तक हिंदूओं को मुसलमान बनाने का काम किया है। पर उसी सांस में गर्व से कहते हैं की हमने पीराना में दखल दे कर सतपंथीयों को मुसलमान बनने से रोक है। पीराना पर को धीरे-धीरे हिन्दू रंग चढ़ाकर हिन्दू धर्म में खपा देने की हमारी रणनीति में हम काफी हद्द तक सफल हुए हैं।
पर जब उन्हें पूछने में आए की.. ;
आज से 30 वर्ष पहले जब पीराना के साथ आप जुड़े तब पीराना में अनुयायियों की संख्या बहुत कम थी तो आज इसमें बढोती कैसे हुई? उस सतपंथ में कौन से धर्म के लोग जुड़े? जवाब तो हिन्दू है। क्यों की कोई मुसलमान सतपंथ के साथ जुड़ता नहीं है। तो क्या आप हिंदूओं को सतपंथ से जोड़ना चाहते हो?
30 वर्ष पहले पीराना की संस्था बंद होने की कगार पर आ गई थी। तो वह संस्था आज मजबूत कर सतपंथ धर्म छोड़ने वाले लोगों के प्रवाह को रोक कर हिंदूओं को नुकसान क्यों पहुंचाया नहीं जा रहा?
पिछले 30 वर्षों में अनेक नए सतपंथ के मंदिर निर्मित हुए। अनेक पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार करने में आया। गुजरात तो फिर भी ठीक है, पर महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के विस्तार में हिन्दू धर्म के नाम पर सतपंथ फैलाने का काम पूरे जोर में चलाया जा रहा है। क्या RSS इत्यादि को इस बात का पता नहीं है?
.. तब इन प्रश्नों से उनके चेहरे का रंग उड़ जाता है। उनके पास से कोई संतोष कारक उत्तर नहीं आता। गहराई में देखें तो इस्लामी अल-ताकिया के विषय में कोई जानता तक नहीं है। जिससे साबित होता है कि पीराना के अल-ताकिया की चाल के यह शिकार हुए हैं। और उनका दुरुपयोग कब हो गया यह उनको खबर तक नहीं मिली।
पीराना सतपंथ के संचालकों की अपनी जाती यानी कच्छ कड़वा पाटीदार जाती (जिस में सतपंथ और सनातन.. ऐसे दो भाग हैं) उस जाती के कुछ गाँव जैसे की कच्छ में दरसड़ी, ममायमोरा, राजपर, भेरैया, विराणी – गढ़, इत्यादि गांवों में सतपंथ के साथ संयुक्त समाज बनाने बातें होने लगी हैं। गुजरात में मोडासा विस्तार ऐसे विचारों के कारण बहुत पीड़ित हैं। हाल 2 महीने पहले कापड़वंज के पास हरिपुरा गाँव में सैयद इमामशाह बावा के साथ उमीया माता की मूर्ति स्थापित की गई।
ऐसा करके इस्लाम के साथ मिक्स संस्कृति का निर्माण पीराना वाले क्यों कर रहें हैं? क्या RSS का इरादा ऐसी मिक्स संस्कृति का निर्माण करवाना है? अगर नहीं, तो RSS यह सब कुछ रोकने के लिए कुछ क्यों नहीं करती। ऊपर बताए सभी जगहों पर किसी मुसलमान की कोई समस्या नहीं है। फिर भी इमामशाह और निष्कलंकी नारायण के मंदिर क्यों बनाए जा रहें हैं? और वह भी हिन्दू देवी-देवताओं के साथ। फिर भी RSS को क्यों समझ में नहीं आ रहा है की पीराना सतपंथ वाले पूरे प्लानिंग से सिस्टमैटिक (योजना बद्ध) पद्धति से आरएसएस इत्यादि संस्थाओं का दुरुपयोग कर रहें है।
पीराना के तत्कालीन गादीपति गंगाराम काका उर्फ ज्ञानेश्वर महाराज अपने हाथों से सैयद इमाम शाह की कब्र की पूजा करते हुए। यह फोटो वर्ष 2021 का है।
C. मीडिया की मुख्य धारा और बौद्धिक वर्ग: अल-ताकिया से लेस पीराना में होने वाले बदलावों की असर जिस समय अंतराल में बाहर दिखाई देना चाहिए था, उसी समय में गुजरात में BJP सत्ता पर आई। उस समय मीडिया का अधिकांश वर्ग BJP को सांप्रदायिक और धर्म की राजनीति करता पक्ष बताने में लगा हुआ था। कुछ ही वर्षों में गोधरा कांड हुआ और नरेंद्र मोदी एक शक्ति शाली नेता के तौर पर उभर के सामने आए। जिन्हें रोकने के लिए अधिकांश मीडिया कोई न कोई बहाना ढूंढ रही थी जिससे नरेंद्र मोदी को किसी भी प्रकार से गुनहगार घोषित कर उनकी छवि को खराब किया जा सके।
बस फिर क्या था? उन्हें जो चाहिए था वह मिलने लगा। पीराना में होने वाले बदलावों की वजह नरेंद्र मोदी और BJP के हिन्दू वादी राजनीति का परिणाम बताकर मीडिया वाले स्टोरी चलाने लगे। मीडिया को रुचि मात्र नरेंद्र मोदी की छवि खराब करने में थी। किसी ने पीराना में होने वाले बदलाव के मूल कारणों का अध्ययन करने में रुचि नहीं ली। उन्हें तो जो चाहिए था वह रेडीमेड मिल गया।
नरेंद्र मोदी की एक जीवनी (biography) लिखने वाले श्री नीलांजन मुखोपाध्याय ने वर्ष 2013 में अंग्रेसजी भाषा में प्रकाशित पुस्तक “नरेंद्र मोदी – धी मॅन एंड धी टाइम्स” में लिखते हैं की “पीराना में सैयादों की उपस्थिति से समस्याएं बढ़ती हैं.. खास नरेंद्र मोदी को”। जब की मोदी का पीराना में होने वाले बदलावों में कोई भूमिका नहीं है।
BJP के पक्ष वाली मीडिया का कोई खास वजन उस समय नहीं होता था। RSS, VHP, BJP के अलग होकर कुछ छापना यह उनके लिए अशक्य था। वजहों की गहराई में उतारने के लिए मेहनत और पैसे लागतें हैं। ऐसी मेहनत और पैसे लगाने की किसी ने जरूरत नहीं समझी। इसलिए सच्ची बात जनता के सामने बाहर नहीं आ सकी।
अपने अल-ताकिया के प्रयोग के लिए, पीराना सतपंथ के संचालकों के लिए यह समय एकदम अनुकूल था। BJP, RSS और अन्य हिन्दू संगठन पीराना को हिन्दू पहचान देने का प्रयत्न कर रहे थे। तब कांग्रेस और विपक्ष वोट बैंक की लालच में मतदाताओं को नाराज करना नहीं चाहती थी। जिसके कारण पीराना सतपंथ को किसी प्रकार का विरोध का सामना किए बगैर अच्छी सफलता मिली।
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इस कशमकश के बीच किसी का ध्यान कच्छ कड़वा पाटीदार जाती में आकार लेती परिस्थितियों पर नहीं गया। सतपंथ धर्म छोड़ चुके सनातनी कच्छ कड़वा पाटीदारों की केन्द्रीय संस्था द्वारा अपने लोगों को हिन्दू धर्म के विषय में दिए जाने वाले सूचनाओं का सीधा असर पीराना ऊपर होता था। वह इस लिए क्यों की पीराना अपनी पहचान हिन्दू कच्छ कड़वा पाटीदार जाती के रूप में करता था, ठीक उसी तरह से जैसे एक बेल अपना अस्तित्व टिकाने के लिए जिस तरह बड़े वृक्ष से लिपटी रहती है। क्यों की अगर उनकी पहचान अलग हो जाएगी तो उनका अस्तित्व खत्म हो जाएगा, यह पक्का था।
ऐसी कोशिशों से पीराना सतपंथ अपना अस्तित्व टिकने में सफल हुआ।
10. सतपंथीयों ने अपनी हिन्दू पहचान का दुरुपयोग क. क. पा. जाती को हिन्दू धर्म से विमुख करने के लिए किया:
वर्ष 1980 तक एकता, सद्भाव, संगठन, भाईचारा, हम हिन्दू हैं, एक ही जाती के हैं, हमारा खून एक है, साथ में रहकर अपना बना लो ऐसे सिद्धांतों को अपनाकर सतपंथियों को हिन्दू बनाने में क. क. पा. जाती के सनातनी लोगों को बहुत बड़ी सफलता मिली थी। ऐसे प्रयासों के कारण, पहले बताए जाने के अनुसार वर्ष 1980 तक, पीराना सतपंथ की संस्था बंद होने की कगार पर आ चुकी थी। यह जानकार क. क. पा. जाती के सनातनी नेता गण आत्म संतुष्ट होने की भूल कर बैठे। अपना ध्येय पूर्ण करने पर ध्यान नहीं दिया। पीराना की गतिविधियों पर नजर रखना भी बंद कर दिया। कहते हैं न की नजर हटी और दुर्घटना घटी। बस अब दुर्घटना घटने की देरी थी।
सरल शब्दों में कहें तो क. क. पा. जाती की भूल यह हुई कि.. ऊपर बताए अनुसार.. एकता, सद्भाव, संगठन, भाईचारा, साथ में रखकर अपना बना लेना, इत्यादि आदर्शवादी सिद्धांतों का उपयोग कौन सी परिस्थितियों में नहीं करना चाहिए, उसका पूरा अभ्यास किए बगैर सतपंथीयों को अपने सनातन (हिन्दू) समाज में स्वीकारते गए। यह भूल नहीं होनी चाहिए थी।
कच्छ कड़वा पाटीदार (क. क. पा.) समाज भी भ्रमित हो गया। क्यों की सतपंथियों का प्रचार ऐसा था कि हम हिन्दू हैं और पीराना में अभी भी कुछ इस्लामी तत्व हैं, उन्हें हम निकाल रहें हैं। इस काम में थोड़ा समय लगेगा, इसलिए आप हमें सहयोग दीजिए।
क. क. पा. जाती के नेता सतपंथियों की इस चाल को समझ नहीं सके। सतपंथी धीरे-धीरे सुधर जाएंगे और हिन्दू बनते जाएंगे (भूतकाल की रणनीति के आधार पर) ऐसा मानने लगे। सतपंथीयों ने भी सनातनी नेताओं को वचन दिया था कि हम हिन्दू बन जाएंगे। बस हमारे बड़ी उम्र वाले बुजुर्ग है, उनकी आँख बंद हो जाए उतनी देर है। रातोंरात किसी की श्रद्धा बदली नहीं जा सकती और बुजुर्गों की तो कभी नहीं, इसलिए हमें थोड़ा समय दीजिए।
पहली दृष्टि से बात सही लगने के कारण सनातनी नेताओं ने सतपंथीयों को अपनी संस्थाओं में शामिल किया। धीरे-धीरे सतपंथी सनातनी समाज में ऊंचे पद पर पहुँच गए। अन्य सनातनी नेताओं को अपने प्रभाव में लिया। जिन्हें हो सके उन्हें उपकार (obligation) के नीचे दबाकर रखा। कहीं लालच दी, तो कहीं उनकी कमजोरी का फायदा ले कर अपनी मंडली बड़ी करते गए। एक बार उनके पैर मजबूत हो गए तब उन्होंने अपना असली रंग दिखाना शुरू किया।
सनातन समाज में होने वाले हिन्दू देवी-देवताओं का जयकार के सामने सतपंथ वाले मुसलमान इमामशाह और निष्कलंकी नारायण इत्यादि की जी बोलने लगे। जिस समाज के लोग इमामशाह और निष्कलंकी नारायण का त्याग कर अपनी नई हिन्दू समाज बनाई हो, उस समाज में इमामशाह की जय कोई कैसे सहन कर सकता है? हिन्दू साधु संतों का कोई कार्यक्रम सनातन समाज रखे तो वह लोग सतपंथ का धार्मिक कार्यक्रम रखने का आग्रह रखने लगे। भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है, इसलिए सनातन समाज में जिसे जो चाहे वह धर्म पाल सकता है। ऐसे जूठे उदाहरण दे कर अपने इस्लामी तत्वों का प्रचार करने का रास्ता तैयार करने लगे। इन परिस्थितियों का सामना करने के लिए सनातनी हिन्दू क. क. पा. समाज ने गलत निर्णय लिया की अब से समाज में किसी भी धर्म की जय नहीं बोली जाएगी।
समाज और धर्म अलग है। जिसे जो धर्म पालना हो वह पाल सकता है। समाज में धर्म न लाओ इत्यादि जूठे सिद्धांतों का सहारा ले कर जाती के लोगों को विभाजित करने का प्रयास होने लगा। समाज विभाजित न हो इसलिए समाज में धार्मिक कार्यक्रम बंद होने लगे। सनातन धर्म की जय बोलना बंद हो गया। हिन्दू देव-देवताओं की जय बोलना बंद हो गया। धर्म परिवर्तन का पागल कदम, जिसके अनुसार लोगों को पहले अपने खुद के धर्म से विमुख करो, वह कदम उठ रहा था।
इस तरह से सतपंथियों ने सनातनीयों को अपने ही समाज में अपने हिन्दू धर्म से दूर करने का पहले मकसद में सफल हुए। संक्षिप्त में कहें तो सनातनी हिन्दू संगठन को कमजोर करने के पहले कदम में वह सफल हुए।
11. क. क. पा. सनातन समाज की संस्थाओं और संगठनों को तोड़ने का प्रयास करने में आया:
सनातनीयों के मन से अपने ही हिन्दू धर्म से दूर करने के बाद, अब बारी थी सनातनी संस्थाओं और संगठनों को कमजोर करने की। वह इसलिए क्यों की लोगों को सनातनी हिन्दू संगठन से दूर करने के बाद ही उन्हें सतपंथी बनाया जा सकेगा।
इसलिए सनातनी संस्थाओं को भी तोड़ने का काम सतपंथीयों से शुरू किया। कभी वह खुद सामने आते, तो कभी उनकी ओर से उनके सनातनी चमचे सामने आते।
सनातनीयों की मातृ समाज यानी श्री अखिल भारतीय कच्छ कड़वा पाटीदार समाज, ट्रस्ट क्रम A-828-कच्छ, के सामने कई जूठे केस दर्ज किए गए। एक केस में सतपंथीयों के द्वारा ऐसा जूठा दावा किया की इस समाज की कार्यकारी समिति सतपंथीयों की है। समाचार पत्रों में उनके कार्यकारी समिति के समाचार और फोटो भी प्रकाशित किए गए। जब की असली कार्यकारी समिति तो सनातनी हिंदूओं की ही है। ऐसा ही एक अन्य किस्सा है, जिस में इन लोगों के समाज के बैंक खाता बंद करने के लिए बैंक में जाकर पत्र दिया। पर ऐसी घटनाओं से समाज के अग्रणीयों का मनोबल टूटने के बजाए ज्यादा मजबूत हो गया, वह एक अलग बात है।
दूसरा महत्व का और दुखद उदाहरण है, मांडवी स्थित सनातनीयों की होस्टल का। मांडवी शहर के बाहरी हिस्से में पाँच एकर जमीन पर सनातनीयों के धाम धूम से विद्यार्थी होस्टल बनाई। पर वहाँ के स्थानीय संचालकों को मोहरा बनाकर केवल सामान्य लेटर पेड़ पर एक निर्णय/ठराव लिख कर, यह पूरी संपत्ति पाटीदार सर्वोदय ट्रस्ट के नाम पर सरकारी रेकॉर्ड में ट्रैन्स्फर कर दिया। इस ट्रस्ट में सतपंथी भी साथ में है। इस लेटर हेड पर कोई स्टेम्प ड्यूटी नहीं भरी गई। किसी प्रकार का रेजिस्ट्रैशन चार्ज भी नहीं भरा गया। मूल मालिक और ट्रांसफर करने वाले व्यक्ति भी अलग-अलग है। ऐसी अनेक खामियाँ है। पर RSS, BJP इत्यादि की मदद से मिला सरकारी तंत्र का दुरुपयोग कर यह कौभान्ड करने में फिलहाल के लिए सफलता मिली है। क्या कभी आपने सोच है कि केवल लेटर पेड़ ऊपर तैयार किया गया एक सादे ठराव के आधार पर कोई संपत्ति ट्रांसफर की जा सकती है? नहीं, तो फिर मांडवी होस्टल कैसे ट्रानफेर हो गया? सामान्य व्यक्ति नहीं कर सकता। केवल राजकीय सत्ता पक्ष और सरकारी अधिकारियों के सहयोग से यह हो सकता है।
ऐसे कई उदाहरण है। कच्छ में रवापर गाँव के पास नवावास गाँव की समाज वाडी (हॉल) पर सतपंथीयों के कब्जा किया हुआ है। विराणी – गढ़ में ऐसी ही समस्या है। कोटड़ा जड़ोदर, कादीया इत्यादि क. क. पा. जाती के लगभग सभी गांवों में सतपंथीयों द्वारा सनातनी संस्थाओं और उनके अग्रणी नेताओं के सामने कई जूठे केस किए गए हैं। उनमें से कई केस आज भी चल रहें हैं।
सनातनीयों को तोड़ने की / कमजोर करने की रणनीति साफ दिख रही है। अगर सतपंथ समाज के खिलाफ कोई विरोध करें तो उसे दबाने के लिए तुरंत उसके सामने सच्चे-जूठे कोर्ट, पुलिस और सरकारी शिकायतें दर्ज कर दो। सतपंथ छोड़ ने की मुहिम चलाने वाले कार्यकर्ताओं में हताशा फैलाने और उनकी परेशानी बढ़ाने एवं उनको डरा ने के लिए अलग अलग-जगहों से शिकायतें की जाती हैं।
इन कारणों से सनातनी एक मंच ऊपर न आ सके और संगठित न हो सके इसलिए उनके संगठनों को तोड़ने की कोशिशें पूरे जोर शोर से होने लगी।
12. क. क. पा. सनातन समाज में से सतपंथीयों को दूर करने की मुहिम छड़ी:
परिस्थिति साफ हो गई। सनातनी (हिन्दू) समाज के सिद्धांतों, आदर्शों और मूल्यों के साथ पीराना सतपंथ के सिद्धांतों, आदर्शों और मूल्यों का मेल खाता नहीं था। इन परिस्थितियों में एकता, सद्भाव, संगठन इत्यादि आदर्शवादी मूल्यों के लिए स्थान नहीं होता।
जिन मामलों में सतपंथ को तकलीफ न हो किसी भी तरफ से मूल्यों को तोड़ मरोड़ कर सनातनी मूल्यों के साथ मेल करवाते हैं। जैसे की गौ शाला, प्याज लहसुन नहीं खाना, माँस न खाना, व्यसन न करना इत्यादि। पर जिन मूल्यों, आदर्शों और सिद्धांतों के विषय में ऐसा लगे की सतपंथ के मूल इस्लामी बीज को नुकसान हो सकता है, वहाँ यह लोग अपने इस्लामी मूल बीज के बचाव में सभी संबंधों को भूल कर लड़ने तैयार हो जाते हैं।
एक ही समाज के अंदर इस्लामी और हिन्दू मूल्यों, आदर्शों और सिद्धांतों को साथ में रखने में आया तो टकराव होना ही है। कभी न कभी घर्षण होना तय है और विवाद पैदा हो ही जाएगा। यह पक्की बात है। आज अगर शांति है, तो कल विवाद होना ही है। इस समस्या से जूझती कच्छ कड़वा पाटीदार जाती में स्थायी शांति बनाए रखने के योग्य उपाय ढूँढने की जरूरत पड़ी।
सनातन समाज के सामने परिस्थिति ने ऐसा भयंकर स्वरूप लिया। उनके सामने ऐसी मुश्किल आन पड़ी की अगर समाज सतपंथ को स्वीकृत करता हैं, तो जाती को धर्म परिवर्तन के रास्ते पर चलता कर देना था, जिससे भविष्य माने शायद सम्पूर्ण समाज/जाती एक दिन मुसलमान बन जाएगी। दूसरी ओर अगर सतपंथ का विरोध करते हैं, तो समाज और संस्थाओं को चलना मुश्किल हो जाएगा। शायद समाज बंद करने की परिस्थिति निर्मित हो जाने का भय था।
दोनों तरफ से हिन्दू सनातन समाज को नुकसान था। समाज के नेता बहुत बड़ी दुविधा में फंस गए थे।
सनातनी नेताओं की इस मजबूरी को ध्यान में रखकर सनातनी समाज के समझकर अग्रणी लोगों ने बहुत लंबे और गहरे विचार के बाद तय किया कि अब हमें (हिन्दू सनातन समाज) हमारे समाज में सतपंथ के लोगों के साथ नहीं रहना। इस विषय पर लोगों को जागरूक करने के लिए वर्ष 2009 में शुरू हुए आंदोलन ने क्रांति का स्वरूप लिया। भारत भर में अनेक सभाओं का आयोजन किया। सनातनी लोगों को अपना भुला इतिहास की जानकारी दी। सतपंथ की अल-ताकिया रणनीति समझाई गई और सावधानी बरतने के लिए जरूरी कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित किया।
13. सनातनी समाज की क्रांति के कारण सतपंथ धर्म छोड़ते लोगों के प्रवाह में तेजी आई:
क. क. पा. सनातन समाज में शुरू हुए आंदोलन की वजह से सतपंथ के खिलाफ बहुत बड़ा आक्रोश ने जन्म लिया। कई सारे सनातनी समाज में से सतपंथीयों को दूर करने में आया। युवाओं, बुजुर्गों, माताओं, बहनों, सभी लोगों का एक ही आवाज उठी के अब सतपंथ की समस्या का अंत लाना है। इस समस्या को भविष्य की पीढ़ी को विरासत में नहीं देना है। अन्य हिन्दू जातियों से भी मदद ली गई।
इसलिए, क. क. पा. जाती की सनातन समाज ने सतपंथ विषय पर निर्णय लेने के लिए एक विशेष सभा नखत्राणा में दिनांक 26-ऑगस्ट-2018 को बुलाई। जिस में भारत भर के बौद्धिक, धार्मिक और सामाजिक नेताओं, उच्च पदवी धारक और प्रभावी लोगों ने भाग लिया। इस सभा में सतपंथ के विषय में कुछ महत्व के निर्णय लिए गए। जिस में प्रमुख थे;
सतपंथी के साथ अब नए वैवाहिक संबंध नहीं जोड़ना है।
सतपंथ के धार्मिक कार्यक्रम में भाग लेना नहीं। उसी तरह सतपंथीयों को सनातनीयों के धार्मिक कार्यक्रमों में बुलाना नहीं। और
सतपंथ के साथ जो-जो संयुक्त संस्थाएं हैं, उन संस्थाओं को धीरे-धीरे अलग कर देना।
संक्षिप्त में कहें तो सतपंथीयों के साथ सभी संबंधों को काट देने का निर्णय लेने में आया।
लोग उदाहरण देने लगे कि शरीर में केन्सर की गांठ के साथ एकता, सद्भाव, संगठन, हमारा खून एक है, साथ रहकर विकास करेंगे जैसी आदर्शवादी सिद्धांतों को नहीं अपनाया जा सकता। जान बचाने के लिए जैसे-जैसे केन्सर की गांठ को कट कर निकालना पड़ता हैं, उसी तरह हिन्दू क. क. पा. सनातन समाज को बचाने के लिए सतपंथ के साथ सभी संबंधों को काटना पड़ेगा।
सनातनीयों के द्वारा लिए इस दृढ़ निर्णय के परिणाम स्वरूप अन्य हिन्दू जातियों में यह संदेश गया की क. क. पा. जाती के सतपंथी लोग धर्म से मुसलमान हैं। इसलिए उनके साथ व्यवहार करने से पहले लोग पूछने लगे कि क्या आप मुसलमान गुरु को मानने वाले या हिन्दू? अन्य हिन्दू जाती सतपंथियों से दूरी रखने लगे। इसका परिणाम यह आया के सतपंथ का युवा वर्ग अपनी पहचान को लेकर शर्म अनुभव करने लगा। ऐसी बातें भी सुनने में आई है सतपंथ की बेटियां मांग करने लगी कि उन्हें विवाह तो हिन्दू लड़कों के साथ करना हैं।
इस वातावरण का असर इतना बड़ा हुआ की सतपंथ छोड़ते लोगों का प्रवाह फिर से जोरों में चलने लगा। दक्षिण भारत, बिलिमोरा, नागविरी, मुंबई, रसलिया, लक्ष्मीपर – नेत्रा, कादिया, वडोदरा, इत्यादि कच्छ और बाहर के अनेक गांवों से हजारों लोग सतपंथ धर्म को छोड़कर सनातन समाज से जुड़े।
14. वर्ष 2018 के बाद सतपंथ का अस्तित्व टिकाने के लिए फिर से प्रयास शुरू किए गए:
सनातनीयों के द्वारा उठाए कदमों का असर इतना विशाल हुआ कि कच्छ में सतपंथियों की जनसंख्या बहुत ही कम रह गई। सतपंथीयों के साथ नए वैवाहिक संबंध जोड़ना लगभग बंद हो गए। संयुक्त सामाजिक संस्थाएं और संपत्ति धीरे-धीरे अलग हो रहीं हैं। सतपंथियों के साथ धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों में बहुत बड़ी कटौती आ चुकी है।
पीराना फिर से भयंकर स्थिति में आ पहुंचा। वर्ष 1990 के दरमियान शुरू किया गया नवनिर्मित अल-ताकिया को लेकर अपनाए गए हिन्दू दिखावा, अनुवादित शास्त्र, साधु सम्मेलनों, हिन्दू संगठनों इत्यादि के पीछे किए गए मोटी-मोटी रकमों के खर्च पर पानी फिर गया।
सतपंथ छोड़ते लोगों का प्रवाह रोकने के लिए सतपंथ में बदलाव करने पान मजबूर हुए। जगह-जगहों पर युवा सतपंथ विचार घोषटी सभाएं का आयोजन कर प्रवाह को रोकने के प्रयास किए गए। मुंबई के उपनगर बदलापूर में ऐसी ही सभा का आयोजन दिनांक 12-सप्टेंबर-2018 को किया गया।
इस सभा में पीराना से आए खास वक्ताओं के द्वारा यह कहने में आया कि अब समय आ गया है की सतपंथ के मूल बचाकर (यानी इस्लामी बीज/तत्वों को न बदल कर) बाहर का पैकिजींग बदलने की जरूरत है। सतपंथ के युवाओं के मान में उठती शंकाएं जैसे की क्या वह धर्म के सच्चे रास्ते पर हैं? वह अल्पसंख्य में क्यों हो गए? इत्यादि प्रश्नों और शंकाओं का, आधुनिकता के नाम पर, अंग्रेजी शब्दों का उपयोग कर उत्तर देने में आया।
पर पीराना छोड़ते लोगों के प्रवाह में कोई बड़ा अंतर नहीं आया। इससे विचलित हो कर सतपंथ के एक साधु ने वडाली गाँव में आयोजित सैयद इमामशाह द्वारा लिखित सतपंथ का दसावतार ग्रंथ की कथा के आखिरी दिन यानी दिनांक 31-दिसंबर-2019 की रात को लगभग 9 बजे सतपंथ के युवाओं की एक सभा बुलाई। इस सभा में क. क. पा. सनातन जाती के अग्रणी लोगों को धमकी देते हुए भाषण किए। उन्होंने लोगों को कानून व्यवस्था अपने हाथ में लेने के लिए उत्तेजित किया। उनका व्यवहार और उनकी भाषा बहुत निम्न स्तर की थी जो किसी भी साधु के अशोभनीय है।
ऐसी घटनाएं सूचित करती हैं कि पीराना के संचालक अपने अस्तित्व को टिकने के लिए कैसे-कैसे प्रयास कर रहें हैं। उनकी मानसिक स्थिति क्या होगी इस बात की कल्पना अपने दिमाग में रखकर आगे बताए मुद्दों को पढ़ोगे तो आपको पता चलेगा कि पीराना में जो इस व्यक्त नहीं दीवार खड़ी की गई है, उसके पीछे सच्चे कारण कौन से हैं।
15. पीराना में हाली में हुए बदलावों के पीछे की वाणी और व्यवहार में कितना अंतर है? यह बदलाव केवल हिंदूओं को सतपंथ छोड़ने से रोकने के लिए हैं।
दिनांक 23-07-2021 का समझौता – जिस में सैयद, पिराना के ट्रस्टी, संचालक, पुलिस, SDM इत्यादि लोगों के हस्ताक्षर है।
दिनांक 27-07-2021 का समझौता – जिस में सैयदों इत्यादि के अलावा सतपंथ समाज के तत्कालीन प्रमुख देवजी भाई , पुलिस, SDM के हस्ताक्षर हैं।
इससे पहले बताए गए अनुसार पीराना सतपंथ के संचालक अपना अस्तित्व बचाने के लिए बहुत बड़े दबाव के नीचे हैं।
सतपंथ के अनुयायियों का बहुत बड़े वर्ग की दिली इच्छा है कि इमामशाह धर्म परिवर्तन करते थे, जिसे अब सभी जान चुके हैं, तो हमें अब इमामशाह को पूजना नहीं चाहिए। वह कहते हैं कि हम हिन्दू हैं तो एक मुसलमान की पूजा करने की कोई जरूरत नहीं है। हिन्दू धर्म में इमामशाह से भी अच्छे और उच्च कई गुरु हैं और भूतकाल में हो चुके हैं। तो वैसे किसी गुरु को हम क्यों नहीं पूजें? पर पीराना सतपंथ के प्रचारक इमामशाह को छोड़ना नहीं चाहते। सतपंथ में इधर-उधर के छोटे बड़े कई बदलावों को लाकर इमामशाह को पकड़े हुए हैं। आखिर क्यों?
हाली में पीराना में भले दिखावा के लिए दीवार खड़ी की गई हो, पर छुपे तौर पर सैयदों के साथ साठ-गांठ करते हैं। हिंदूओं का विश्वास गलत तरीके से जीतने के लिए जनता में सैयदों का विरोध करते हैं, पर बंद दरवाजों के पीछे पीराना में होने वाले बदलावों को अंजाम देने के लिए लिखित समझौता करते हैं। सैयदों के साथ पीराना के ट्रस्टी, सतपंथ समाज के प्रमुख के भी हस्ताक्षर हैं। दिनांक 23-जुलाई-2021 और दिनांक 27-जुलाई-2021 के समझौतों में की कापियाँ बाहर आ चुकी हैं, जिसमें साक्षी के रूप में सरकारी अधिकारियों के हस्ताक्षर भी देखे जा सकते हैं।
पहले समझ लेते हैं की पीराना की नई दीवार कौन सी जगह पर खड़ी की गई है;
पीराना का मुख्य स्थान को तीन हिस्सों में समझ सकते हैं
हिन्दू दिखावा वाला – निष्कलंकी नारायण मंदिर (सामान्य जनता के लिए इस जगह से आगे जाना आसान नहीं होता। कई सारे सवालों को पूछा जाता है और आगे जाने के लिए निराश किया जाता है)
मुसलमान दिखावा वाला – मुसलमानों का कब्रिस्तान जहां इमामशाह की दरगाह, सेद खान की दरगाह, रबारी समाज के धर्म गुरुओं की दरगाह, पूर्व काकाओं की कब्रें, सैयद धर्मगुरुओं की कब्रें के साथ सैयद समाज के लोगों की कब्रें इत्यादि हैं। इस भाग में कुछ दरगाहों के मालिक तो रबारी समाज और मुसलमान समाज है।
इस्लाम दिखावा वाला – सतपंथ के पूर्व गादिपती दीपा काका द्वारा निर्मित इमामशाह मस्जिद.
पीराना की इमामशाह मस्जिद
(निर्माता दीपा काका)
सरकारी रेकॉर्ड (7/12) में इमामशाह मस्जिद के मालिक के तौर पर पीराना की इमामशाह बावा संस्थान बताया गया है।
2. हाली में 30-जनवरी-2022 को जो 13 फुट ऊंची “L” आकार में दीवार बांधी गई है, वह उस तरीके और उस जगह पर है की वह मुसलमानों के कब्रिस्तान के बीच में खड़ी की गई है। जिसके..
एक तरफ इमामशाह की कब्र वाली दरगाह, सेद खान की दरगाह, रबारी समाज की दरगाह, पूर्व काकाओं की कब्रें, सैयद धर्म गुरुओं की कब्रें इत्यादि हैं।
दूसरी तरफ सैयद समाज के लोगों की कई सारी कब्रें हैं।
वैसे ही इमामशाह की दरगाह और मस्जिद के बीच में भी दीवार खड़ी की गई है।
कारणों: दीवार खड़ी करने के पीछे के कारणों में ऐसा प्रचार करने में आया कि मस्जिद की ओर असामाजिक तत्वों के द्वारा पत्थर फेंके जा रहें हैं, जिससे लोगों का बचाव करने के लिए ऊंची दीवार खड़ी की गई है।
ध्यान दे: ऊपर बताए विभागों के अलावा पीराना संस्था में कुछ और सुविधाएं हैं जैसे हॉल इत्यादि। पर इस चर्चा में उनका कोई सीधा महत्व नहीं है।
पीराना संस्था का मुख्य द्वार (गेट) ऊपर बोर्ड को हटा देने में आया है।
बाएं ओर पुराना फोटो है, जिस में बोर्ड दिख रहा है। दाहिने ओर नया फोटो है, जिसमें बोर्ड नहीं है।
पीराना में जो कथा कथित कम्पाउन्ड की नई दीवार और संस्था के मुख्य गेट का बोर्ड “धी इमामशाह बावा संस्था ट्रस्ट” वाला बोर्ड हटाकर सतपंथीयों को और हिंदूओं को क्या संदेश देने का प्रयास किया गया, यह समझते हैं।
पीराना संस्था से जुड़े मुसलमानों का प्रभाव कम करने का प्रयास हो रहा है।
दिनांक 11 से 13 मार्च 2022 के बीच आयोजन होने वाली RSS की महत्वपूर्ण अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के सामने बनावटी हिन्दू छवि चमकने के लिए।
RSS की सभा में भाग लेने वाले लोगों से खुद की (सैयद इमामशाह की दरगाह के कारण) मुसलमान पहचान छिपा ने के लिए। जिससे RSS के अनजान लोगों के मन में पीराना प्रति संभावित नापसंदगी निर्मित न हो।
RSS को बताने के लिए, मुसलमान सैयद इमामशाह बावा से सतपंथीयों को धीरे-धीरे दूर करने के बनावटी प्रयास हो रहें हैं।
सतपंथीयों को संदेश देने के लिए कि सतपंथ हिन्दू धर्म का भाग है। इसलिए सतपंथ छोड़ने की जरूरत नहीं है।
अब, दीवार खड़ी करने और बोर्ड को हटाने की घटनाओं से सतपंथी और हिंदूओं को बेवकूफ बनाने का खेल के पूछे की मुख्य उद्देश्य को समझ ने का प्रयत्न करते हैं।
पीराना में जो दीवार खड़ी की गई है, उस दीवार में से कब्रिस्तान के दूसरी ओर जाने का दरवाजा क्यों रखने में आया? मुसलमान के कब्रिस्तान में इतनी रुचि क्यों है? उत्तर है कि कब्रिस्तान के मालिक पीराना की मुख्य संस्था ही है। यानी “धी इमामशाह बावा रोज़ा संस्थान कमेटी ट्रस्ट” रेजिस्ट्रैशन नंबर E-738 है।
जिस मस्जिद से हिंदूओं को दूर रखने की आड़ में दीवार खड़ी की है, उस मस्जिद का मालिक कौन है? उत्तर: मस्जिद का मालिक तो ऊपर बताए अनुसार पीराना की मुख्य संस्था है। तो फिर मस्जिद से दीवार खड़ी कर क्या वाकई हिंदूओं को दूर रखने का प्रयत्न है? या सिर्फ आँख में धूल झोंकने का षड्यन्त्र है। वास्तव में हिंदूओं को पीराना संस्था में जकड़ कर रखने के लिए दीवार खड़ी की गई है।
अगर मस्जिद की ओर से पत्थर फेंके जाने की बात सच है, तो उसके लिए सीधा जिम्मेदार कौन है? उत्तर है पीराना की मुख्य संस्था।
मुद्दे की बात यह है कि कब्रिस्तान-मस्जिद और इमामशाह की दरगाह इन दोनों भागों के मालिक तो पीराना संस्था है। तो फिर अपनी मालिकी की संपत्ति के बीच इस तरह से 13 फुट ऊंची दीवार क्यों बनाई गई? किसी न किसी को तो बेवकूफ बनाने के लिए ही ना?मुसलमानों की कुछ कब्रें
पहले (दीवार नहीं थी तब) पत्थर फेंकने वाला व्यक्ति को दूर से देखा जा सकता था। पर अब दीवार बन जाने के बाद दीवार के ऊपर से पत्थर फेंकने वाला व्यक्ति नहीं दिखेगा। तो दीवार बनाकर फायदे के बजाए नुकसान किया है।
ऐसी कौन सी मुसीबत आन पड़ी के एक ही दिन में 13 फुट ऊंची बड़ी दीवार खड़ी करने की जरूरत पद गई?
दीवार के अंदर आई छोटी-छोटी कब्रें है, जैसे की इमामशाह की दरगाह के दरवाजे के पास आए कब्रें, सैयद शमशुद्दीन बावा की कब्र, पूर्व काका की कब्रें, मुसलमान सैयद समाज की कब्रों इत्यादि कब्रों के आगे 3 से 4 फुट की छोटी दीवारों को क्यों बनाया गया? यहाँ से तो कोई पत्थर नहीं फेंक रहा था? इन छोटी-छोटी कब्रों को किसकी नजर से छिपाना चाहते हैं? उत्तर साफ है कि सतपंथियों और हिंदूओं को बेवकूफ बनाने के लिए।दरगाह परिसर में आईं सतपंथी कब्रें और टाइल्समृतक सतपंथियों के शरीर के अंग दफनाने की जानकारी देती टाइल्स
इसी तरह से उसी परिसर में हिन्दू सतपंथियों की कब्रें और मृतक के शरीर के दफनाए अंग की जानकारी देते टाइल्स भी लगी हुई थी। लाखों रुपए खर्च कर पीराना में दफनाने की आस्था और श्रद्धा रखने वाले परिवार की भवनों को क्यों ठेस पहुंचाई गई? यह कब्रें और टाइल्स तो मुसलमानों की नहीं थी, तो फिर उन्हें क्यों तोड़ा? कोली और काछी समाज के पाटीदार इस बात से बहुत नाराज चल रहें हैं। उनकी श्रद्धा, आस्था और पूजा के स्थान को तोड़कर हिन्दू समाज को क्यों नुकसान पहुंचाया है?
उसी परिसर में इमामशाह की दरगाह को लगकर मुसलमानों की छोटी बड़ी दरगाहें और कब्रें हैं, जिसमें रबारी समाज के धर्म गुरु सैयादों की कब्रें और दरगाह शामिल हैं। यह कब्रें इमामशाह बावा रोजा ट्रस्ट के मालिकी की नहीं हैं। पर वह दरगाहें लोगों को न दिखे और दबकर रखने के हेतु से उनके मुख के आगे अलग से दीवार खड़ी करने का काम शुरू करने में आया था। परंतु रबारी समाज के बड़े नेता और अग्रणी लोग वहाँ समय पर पहुँच गए और जबरदस्त विरोध के बाद काम बंद करवाया था।
नगीना गोमती (धार्मिक रीत से बहुत महत्व का स्ट्रक्चर) का मुख दक्षिण के ओर था। यानी अंदर से दरवाजा दक्षिण की ओर खुलता था। उसे बदल कर उत्तर की ओर क्यों करने में आया? इमामशाह ने बांधा हुआ नगीना गोमती को बदलने का अधिकार किसी को नहीं है। फिर भी ऐसा करके सतपंथियों की भावनाओं को आहत किया है। उन्हें तो सतपंथियों की भी फिक्र नहीं है, तो फिर किसकी फिक्र है?
स्थायी समाधान लाने के हेतु से पीराना सैयादों ने प्रस्ताव दिया है कि इमामशाह दरगाह, कब्रिस्तान और मस्जिद उन्हें दे दिया जाए और उसके बदले निष्कलंकी नारायण मंदिर, इमामशाह का ढोलिया, मकान, बड़ा स नया हॉल, करसन काका की समाधि इत्यादि संपत्ति को सतपंथियों को दे दिया जाए। तो क्यों इस प्रस्ताव को पीराना के संचालक स्वीकारते नहीं हैं?
मस्जिद और कब्रिस्तान वैसे ही पीराना वालों ने छोड़ दिए है। केवल मुसलमानी दरगाह का सवाल है। समाधान के लिए केवल दरगाह को छोड देना बाकी है।
ऐसे भी समाचार मिले हैं कि इमामशाह की कब्र वाली दरगाह के दरवाजे काले रंग के कांच के बनाए गए या बनाए जा सकते हैं। जिससे अंदर जलने वाले दिए की केवल रोशनी बाहर दिखे। अंदर की कब्रें नहीं। ऐसा करके किसे बेवकूफ बनाने का प्रयत्न किया जा रहा है? मुसलमानों को तो पता है कि अंदर किसकी कब्रें हैं। हिंदूओं से कब्रों को छिपाने के लिए न? पीराना की इस समय परिस्थिति ऐसी है की अगर सब कुछ खुला हो जाए तो RSS, VHP, BJP, बजरंग दल, किसान संघ के कार्यकर्ता उन्हें सवाल करेंगे और शायद इमामशाह की दरगाह तो छोड़ने के लिए दबाव बनाएं।
कई बार सतपंथ के साधुओं के मुख से खुले कार्यक्रमों में कहा गया है कि मैं तो केवल इमामशाह की कब्र के पास जलती ज्योति को मानता हूँ। वहाँ की किसी भी अन्य वस्तु को नहीं मानता। तो फिर सोचो कि जैसे हाली में दिल्ली में शहीद सैनिकों की अमर जवान ज्योति का विलीनीकरण राष्ट्रीय समर स्मारक (National War Memorial) की ज्योति के साथ किया गया, वैसे इमामशाह की ज्योति को वहाँ से लेकर अन्य जगह पर विलीनीकरण हो सकता है। अगर पूरा संतोष मिलता है तो सम्पूर्ण दिए को भी साथ ले जा सकते हो। कोई रोकेगा नहीं, पर इमामशाह की दरगाह को छोड़ दो। पर उनके वर्तन से पता चलता है की उन्हें इमामशाह की दरगाह छोड़नी नहीं है।
बंद दरवाजों के पीछे पीराना के कर्ताओं के मुख से सुनने में आता है कि हमें तो मुसलमानों का सब कुछ हटाना चाहते हैं, पर क्या करें सरकारी कानून ने हमारे हाथ बांध रखें हैं। पर कभी उन्हें आप पूछो कि पीराना को कुछ देर छोड़ कर सतपंथ के अनुयायियों के गांवों और अन्य जगहों के सतपंथी मंदिरों में से इमामशाह और निष्कलंकी नारायण को क्यों नहीं हटा देते? तब उनके उत्तर से आपको पता चलेगा कि उनकी वाणी और वर्तन में कितना अंतर है।
उसी तरह उन्हें पूछो कि अगर आप सच्चे हिन्दू हैं तो फिर इमामशाह द्वारा लिखित दसावतार ग्रंथ और अन्य सतपंथी ग्रंथों को त्याग कर मूल हिन्दू शास्त्रों और ग्रंथों का प्रचार प्रसार पीराना से क्यों नहीं करते?
उसी तरह उन्हें पूछो कि इमामशाह वाली दसावतार ग्रंथ की कथाओं का जगह-जगहों क्यों करवाते हो। उन्हें बंद कर के शुद्ध हिन्दू दसावतार ग्रंथ की कथाएं क्यों नहीं करवाते? तब आपको पता चलेगा कि मुसलमानों का केवल बहाना है, उन्हें सतपंथ के इस्लामी बीज इमामशाह और निष्कलंकी नारायण को किसी भी कीमत पर छोड़ना ही नहीं है।
एक बात पर पीराना सतपंथ के प्रचारक बड़ा गर्व करते हैं कि भारत में केवल पीराना ही एक मात्र ऐसा स्थान है जहां मुसलमानों के धार्मिक स्थल पर कब्जा हिंदूओं किया है। अन्यथा सामान्य तौर यही देखा गया है कि मुसलमानों ने हिन्दू धार्मिक स्थलों पर कब्जा किया होता है। उनके इस दावे के पीछे की पोल खोल ने के लिए उनसे पूछो कि मुसलमानों द्वारा कब्जे में लिया हुआ हिंदूओं के कौन से धार्मिक स्थल में आपको वहाँ के मुसलमान अपने मुसलमान बिरादरी में हिन्दू धर्म का प्रचार करते है? इसके विपरीत आप तो सैयद इमामशाह और उनके दादा पीर सदुरद्दीन द्वारा स्थापित सतपंथ नामक इस्लाम धर्म का प्रचार प्रसार कर रहे हो? ऐसा कर के हिंदूओं को ही बेवकूफ बना रहे हो, यह स्पष्ट है।
इमामशाह की दरगाह पर कब्जा करना एक बात है और सतपंथियों को धर्म का उपदेश देना दूसरी बात है। उन्हें पूछो कि सतपंथ के अनुयायियों को इमामशाह और निष्कलंकी नारायण से स्थायी रूप से दूर करने के लिए आप क्या कर रहे हो? जब तक इमामशाह और निष्कलंकी नारायण सतपंथ के शस्त्रों में हैं, तब तक सतपंथी किसी भी समय धर्म परिवर्तन के शिकार हो सकते हैं। लोगों में विश्वास जगाने के लिए कम से कम इतनी तो शुरु वात करो कि पीराना के अलावा सतपंथ के सभी गांवों से, मंदिरों से और संस्थाओं से इमामशाह और निष्कलंकी नारायण को हटा दिया जाए। इस काम में कोई बाधा आपको नहीं आएगी। पहले इस कदम को उठाकर तो दिखाए।
16. सतपंथ के मूल धर्मगुरुओं का विरोध न करने के पछे के कारण:
पीराना सतपंथ के छिपे धर्मगुरु (Hidden Pir) सैयद सलाउद्दीन बावा खाकी क्यों खुले तौर पर बाहर निकालकर पीराना की इस दीवार कर विरोध नहीं करते? पहले बताए अनुसार स्वाभाविक है कि अंदर से सह सभी लोग मिली हुए है।
उसी तरह मोडासा के कई सतपंथियों के धर्मगुरु हैं सैयद आसिफ हुसैन रफी मुहम्मद (डॉ सैयद सफ़ीभाई के भतीजे)। आज दिन तक उन्होंने भी पीराना की दीवार का विरोध क्यों नहीं किया?
अगर मुसलमानों का अस्तित्व वाकई पीराना से निकालने की बात सच होती, तो यह लोग जो धर्मगुरु हैं वह तुरंत विरोध में उतरते। पर दीवार के आड़ में हिंदूओं को पीराना में पकड़े रखने की चाल होने के कारण सतपंथ के धर्मगुरु विरोध नहीं करते। गहराई से विचार करने पर यह बात समझ आती है।
17. मूल में यह सब पैसों के लिए खेल है:
भारतीय कानून के अनुसार, पीराना सतपंथ में एक गैरकानूनी नियम है। सतपंथ के अनुयायियों के पास से उनकी वार्षिक आय का 10% हिस्सा पीराना को देना पड़ता है। जिसे दसोंद कहते है। इन पैसों से पीराना के संचालक मौज के समाचार सुनने में आयतें है। उन पैसों को ऋण के रूप में अनुयायियों को भी दिए जाते है। ब्याज के रूप में मुनाफा का हिस्सा लिया जाता है। इसका मतलब अनुयायियों के व्यापार में भागीदार बन जाते हैं। धीरे-धीरे रकम बहुत बड़ी हो जाती है। पर हास सब रेकॉर्ड के बाहर होता है। जनता या सरकार को कानोंकान इस बात की भनक तक नहीं पड़ती।
अगर सतपंथ की सच्चाई बाहर आ जाती है, तो लोग सतपंथ छोड़ देंगे और पैसों का आना थम जाएगा। पीराना के कार्यकर्ताओं की कमाई चालू रहे इसी में रुचि रहती है। और सतपंथ में नए-नए लोग जुड़ते जाए इसलिए नए-नए प्रपंच रचे जाते हैं। क्यों की आखिर में तो कमाई की बात है। सच्ची झूठी बातें बनाकर इस्लाम धर्म होने के बावजूद सतपंथ एक हिन्दू धर्म है, ऐसी लोगों अच्छी लगने वाली बातें बताकर अनुयायियों की श्रद्धा और अंध-श्रद्धा पीराना में टीकाकार रखने में उन्हें व्यक्तिगत लाभ मिलता है। धर्म के लिए उन्हें अंदर से कोई सच्ची भावना नहीं है। केवल अनुयायियों को धर्म की भावना जागकर सतपंथ में पकड़ कर रखा जाता है।
अगर कोई हिन्दू धर्म के प्रति सच्ची श्रद्धा रखता है, तो कभी भी अपने धर्म के आड़े पैसों को नहीं लाएगा। पैसों को छोड़ देगा पर हिन्दू धर्म नहीं छोड़ेगा। जिसे कि क. क. पा. जाती के सनातनीयों ने सच्चे हिन्दू होकर पीराना से इक भी पैसा लिए बगैर, पीराना छोड़ दिया पर हिन्दू धर्म नहीं छोड़ा। इसे कहते हैं हिन्दू धर्म में इसलिए क. क. पा. जाती के सनातनीयों को कट्टर हिन्दू कहा जाता है।
क. क. पा. जाती के सनातनीयों की तरह अगर सभी सतपंथी अनुयायी हिन्दू बन जाते है, तो पीराना में पैसे कोई नहीं देगा। पैसों के बगैर संस्था बंद हो जाएगी। तो ऐसा कर के बगैर पैसों की निर्बल संस्था बनाकर छोड़ा जा सकता है। पीराना संस्था में बहुत पैसा है जो मुसलमानों के हाथ नहीं लगने चाहिए, यह कहकर पीराना न छोड़ने का बहाना किया जाता है। इस बहाने का भी रास्ता निकाल जा सकता है, अगर रास्ता निकालना हो तो। उसके बजाए पीराना में नहीं संपत्ति लेंगे और वहाँ विकास करेंगे यह कहकर हिंदूओं पीराना में जोड़कर रखा जाता है।
इसलिए एक बात स्पष्ट है कि पीराना के कार्यकर्ताओं के माध्यम से सतपंथ समस्या का समाधान हो जाने की आशा रखना निरर्थक है।
18. सारांश
एक बात की गांठ बांध लेनी चाहिए कि पीराना में हिन्दू समर्थक जीतने भी बदलाव किए जा रहें है, वह केवल कच्छ कड़वा पाटीदार सनातन जाती के दबाव के कारण हो रहें हैं। जब तक यह दबाव है, तब तक ऐसे बदलाव होते रहेंगे। एक बार क. क. पा. सनातनी जाती का दबाव हटा तो RSS, VHP, BJP, बजरंग दल, हिन्दू साधु संतों की पीराना में जरूरत नहीं होगी। क्यों की उन्हें किसी का भी डर नहीं होगा। उनके धर्म परिवर्तन के छिपे अजेन्ड की पोल खोलने वाला कोई बचेगा ही नहीं।
सारांश में कहा जा सकता है कि पीराना द्वारा उठाए जाने वाले कदमों को हमेशा नीचे बताए 2 प्रकारों में से कम से कम एक प्रकार के होते हैं।
1. ध्येय साधने
हिन्दू होने की मान्यता प्राप्त कर लेना
इस मान्यता के दम पर हिन्दू समाज में दाखिल हो जाना
दाखिल होने के बाद हिन्दू समाज से लोगों को सतपंथ में खींच लेना
2. इस्लामी अस्तित्व टिकाने
सतपंथ के इस्लामी बीज, यानी ..
इमामशाह
निष्कलंकी नारायण
सतपंथ के शास्त्र, और
पीराना का स्थानक (स्थान)
.. को किसी भी कीमत पर बचा कर रखना
ऊपर बताए 2 प्रकारों के कदमों के नींव में झूठ (अल-ताकिया के कारण) का भरपूर उपयोग किया जाता है।
इसलिए सतपंथ की समस्या का स्थायी तौर पर निवारण लाना हो तो हमें उनके अस्तित्व को टारगेट करना पड़ेगा। पहले सतपंथ के इस्लामी बीज को निकालना पड़ेगा। तो ही हमें सफलता मिलेगी।
यह कोशिश तब सफल होगी की जब एक ओर से क. क. पा. सनातनी जाती के लोग अंदर से दबाव बनाए और दूसरी ओर से RSS, BJP, VHP इत्यादि बाहर से दबाव बनाए।
हो सकता है कि इस लेख को जूठा साबित करने के लिए इसमें बताए कई मुद्दों को बदल दिया जाए। पर कितना भी बदलाव कर ने में क्यों न आए, आपको यह देखना है की क्या सतपंथ के इस्लामी बीज को सम्पूर्ण रूप से, जड़ से, हटाया गया है क्या? अगर नहीं, तो वह केवल ऊपरी दिखावा है, जिससे हमें बेवकूफ कभी नहीं बनना है।
फिलहाल पीराना के कार्यकर्ताओं को RSS की बहुत ज्यादा जरूरत है। क्यों की दीवार बनाकर पीराना के संचालकों के हाथों से बहुत बड़ा गुनाह / अपराध हुआ है। कोर्ट के आदेश का अनादर, धार्मिक सद्भाव और सुलह-शांति भंग करना, वर्ग विग्रह करना, सतपंथीयों की कब्रें और पूजा के स्थान को तोड़ने जैसे कई गंभीर आरोपों का सामना करना पड़ेगा। ऐसे आरोपों का सामना करने के लिए RSS का साथ बहुत जरूरी है। एक रीत से कहा जा सकता है कि दीवार खड़ी कर के पीराना वाले बहुत बुरी तरह से फंस चुके है। उनकी परिस्थिति बहुत कमजोर है। RSS चाहे तो केवल एक केस करवा के पीराना को अपने इशारों पर नचा सकता है।
जब क. क. पा. सनातनी जाती अंदर से दबाव बढ़ा रही है, तब सवाल यह उठता है की क्या RSS पीराना वालों पर कितना दबाव बनाने में सफल होते हैं? दोनों सनातनी क. क. पा. और RSS एक साथ रहेंगे तो सतपंथ समस्या का हाल लाने में कोई अवरोध नहीं आएगा। कोई भी प्रश्न ऐसा नहीं बचेगा जिसका उत्तर नहीं हो।
इमामशाह के लिखे सतपंथ शास्त्रों की एक बात सच करने का समय आ चुका है। वह बात है कि इमामशाह कह गए हैं कि सतपंथ में एक दिन केवल 2.5 लोग ही बचेंगे। तो तब तक आत्म संतुष्ट बनकर न बैठें.. कोशिशें चालू रखें और रहेंगी।
रियल पाटीदार / Real Patidar Website: realpatidar.com Email ID: mail@realpatidar.com